महत्वपूर्ण बातें (दशा, हमारे पूर्वज, दान & रत्न)

किसी भी ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में उसका पाठ स्वम करना चाहिए जोकि ज्यादा असरकारी है I अगर पाठ कारक ग्रह की दशा का है तो वह शुभ फलदाई है I यदि मारक ग्रह की महादशा है तो उसका पाठ सही राह दिखाता है और उसके मारकत्व को कम करता है I

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कुण्डली के पंचम घर का स्वामी जातक का इष्ट ग्रह (इष्ट देव) होता है I उसका पाठ किसी भी दशा या खराब गोचर में हमेशा लाभकारी होता है I

स्वर्ग सिधार चुके पूर्वजों की फोटो हमेशा दक्षिण – दिशा की दीवार पर लगाएं I उनको प्रतिदिन प्रणाम करना सर्वदा फलदाई होता है I इससे उनका आशीर्वाद मिलता है I 

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रत्न कभी भी गोचर या दशा, अन्तर दशा देख कर नहीं पहना जाता अपितु जन्म लग्न कुण्डली में स्थित ग्रहों की स्थित को देख कर पहने जाते हैं I

किसी भी ग्रह के पाठ – पूजन और मंत्र उच्चारण से उस ग्रह का बल नहीं बढ़ता है बल्कि प्रसन्न होकर वह वह ग्रह आशीर्वाद देता है I

बल बढ़ाने के लिए ग्रह से सम्बंधित रत्न धारण किया जाता है I उसी ग्रह से सम्बंधित खाने – पीने की वस्तुओं का सेवन करने और रंग धारण करने से भी ग्रह का बल बढ़ जाता है I

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